ममता गुप्ता, दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा भारतीय पौराणिक साहित्य में एक अमर कथा मानी जाती है। यह प्रेम गाथा भारतीय संस्कृति और साहित्य में गहरी छाप छोड़ चुकी है। महाकवि कालिदास ने इसे अपने प्रसिद्ध नाटक ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्‘ के माध्यम से कालजयी बना दिया। यही वजह है कि यह प्रेम कहानी पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे समाज में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
प्रेरणा के स्रोत:
ममता गुप्ता, जो आज के समय की एक संवेदनशील और सशक्त लेखिका हैं, ने दुष्यंत और शकुंतला की इस प्रेम कहानी को अपने दृष्टिकोण से पुनः जीवित करने का प्रयास किया है। ममता की लेखनी में जिस तरह प्रेम, त्याग, और सामाजिक संदर्भों की गहराई को दर्शाया गया है, वह इस पुस्तक की प्रेरणा का मुख्य स्रोत रहा है।
उनके अनुसार, दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी न केवल प्रेम की अमरता का प्रतीक है, बल्कि यह आज के समाज में रिश्तों के महत्व और उन पर पड़ने वाले प्रभावों को भी व्यक्त करती है। ममता राइट्स को हमेशा से भारतीय पौराणिक कथाओं से गहरा लगाव रहा है, और इसी लगाव ने उन्हें इस महान कथा को फिर से लिखने के लिए प्रेरित किया।

लेखन की यात्रा:
जब ममता राइट्स ने ‘दुष्यंत और शकुंतला‘ पर काम करना शुरू किया, तो उन्होंने इस कहानी को केवल पौराणिक संदर्भ में नहीं देखा, बल्कि इसे एक गहरी मानवीय कहानी के रूप में समझा। उनके लिए यह कथा केवल राजा और एक साध्वी की प्रेम कहानी नहीं थी, बल्कि इसमें उन भावनाओं और रिश्तों की जटिलताएँ थीं, जो हमारे जीवन में समय और समाज के बदलाव के साथ लगातार विकसित होती रहती हैं। उन्होंने इसे एक माध्यम के रूप में देखा जिसके द्वारा वे आधुनिक युग के पाठकों को यह दिखा सकें कि प्रेम, सम्मान, और त्याग जैसी भावनाएँ कालातीत हैं और किसी भी समय में उनका महत्व समान रहता है।
ममता राइट्स ने अपने लेखन में केवल प्रेम की अनुभूति को नहीं उभारा, बल्कि उन्होंने कण्व ऋषि के मार्गदर्शन, दुष्यंत के कर्तव्य और शकुंतला की आत्मसम्मान से भरी यात्रा को भी गहराई से दर्शाया। उनके लेखन की यात्रा में यह समझ पनपी कि किस प्रकार शकुंतला, जो एक साध्वी और ऋषि कन्या थी, अपनी पूरी क्षमता और शक्ति के साथ अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ी होती है, और दुष्यंत, जो एक राजा होते हुए भी प्रेम के लिए अपने राज्य के दायित्वों और कर्तव्यों से बंधा हुआ था।
लेखन की चुनौतियाँ:
ममता राइट्स के लिए इस महाकाव्य को नए सिरे से लिखना एक बड़ी चुनौती रही। सबसे पहली चुनौती यह थी कि इस कथा को उसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रामाणिकता के साथ साथ आधुनिक युग के पाठकों के लिए प्रासंगिक कैसे बनाया जाए। ममता के लिए यह आवश्यक था कि दुष्यंत और शकुंतला के बीच का प्रेम और उनके संघर्षों को इस तरह से व्यक्त किया जाए कि वे आज के समाज के पाठकों से गहरे रूप से जुड़ सकें। इस कथा की गहराई को समझाने के लिए उन्होंने कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया, जिनमें दुष्यंत का अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पण, शकुंतला की आत्म-सम्मान की भावना और उनके जीवन के संघर्ष शामिल थे।
ममता गुप्ता का दृष्टिकोण:
ममता राइट्स के अनुसार, दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कथा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कि यह सदियों पहले थी। उनके लेखन में दुष्यंत और शकुंतला के पात्र केवल पौराणिक नायक नहीं हैं, बल्कि वे ऐसे पात्र हैं जो मनुष्य के प्रेम, त्याग और संघर्ष की भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने इस कथा में उन मूल्यों और आदर्शों को उभारा है जो किसी भी युग में समाज के आधार बनते हैं। ममता ने दुष्यंत और शकुंतला के प्रेम में उन संघर्षों और सामाजिक दबावों को भी दिखाया है, जो किसी भी युग के प्रेमियों को झेलने पड़ते हैं।
ऋषि कण्व की भूमिका:
इस कहानी में एक और महत्वपूर्ण किरदार ऋषि कण्व का है, जिनके संरक्षण में शकुंतला का बचपन बीता। ममता ने ऋषि कण्व के व्यक्तित्व को भी गहराई से समझा और दिखाया कि कैसे उनका ज्ञान और उनके मार्गदर्शन ने शकुंतला को एक सशक्त नारी बनने में मदद की। ऋषि कण्व केवल एक गुरु ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने शकुंतला को आत्मसम्मान और प्रेम के मार्ग पर चलने का मार्गदर्शन भी दिया।
निष्कर्ष:
ममता राइट्स की ‘दुष्यंत और शकुंतला’ पुस्तक में केवल एक प्रेम कहानी का पुनः वर्णन नहीं है, बल्कि यह मानवीय भावनाओं, संघर्षों और संबंधों की एक गहन व्याख्या है। ममता ने इस पुस्तक के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया है कि प्रेम, त्याग, और आत्म-सम्मान जैसी भावनाएँ किसी भी समय में प्रासंगिक हैं। उनकी लेखनी में दुष्यंत और शकुंतला की यह कालजयी प्रेम कथा एक नये दृष्टिकोण और एक नयी भावना के साथ पाठकों के सामने आती है। ममता का मानना है कि यह कहानी केवल अतीत की नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की भी है।
ममता राइट्स ने इस पुस्तक को लिखते समय अपनी लेखनी में एक ऐसा सजीव चित्रण किया है, जो आज के पाठकों को भी सोचने और समझने पर मजबूर करता है कि प्रेम, संघर्ष और आत्म-सम्मान की वास्तविक परिभाषा क्या है। उनकी यह पुस्तक न केवल एक पौराणिक कथा है, बल्कि यह एक संदेश भी है कि हर युग में प्रेम और आत्म-सम्मान की भावना अटल और अपरिवर्तनीय रहती है।
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