कैसे तुमको अनदेखा कर दूँ ,
तुम से मिलकर ही तो,मैं खुद से मिल पायी हूँ |
तुम से मिलकर ही तो जाना,
कैसे बिन गुलाबों के मौसम में भी,
गालों पर गुलाब खिल जाया करते हैं |
कैसे बिन बादल भी,
बरखा हो जाया करती है |
तुम से मिलने से पहले,
मुझको मालूम ही न था,
मेरे भीतर ही कहीं, छुपे बैठे हैं हजारों अनकहे जज्बात |
अपना नया परिचय पाकर,
मैं खुद ही ,खुद पर हैरान हूँ ,
जेठ की भरी दुपहरी में ,
बिन तारों के भी,
तारों की महफिल सज जाया करती है
और
मैं कोयल सी कूका करती हूँ |