View this post on Instagram
कैसे तुमको अनदेखा कर दूँ,
तुम से मिलकर ही तो, मैं खुद से मिल पायी हूँ ।
तुम से मिलकर ही तो जाना,
कैसे बिन गुलाबों के मौसम में भी, गालों पर गुलाब खिल जाया करते हैं ।
कैसे बिन बादल भी, बरखा हो जाया करती है ।
तुम से मिलने से पहले, मुझको मालूम ही न था,
मेरे भीतर ही कहीं, छुपे बैठे हैं हजारों अनकहे जज्बात ।
अपना नया परिचय पाकर,
मैं खुद ही, खुद पर हैरान हूँ ।
जेठ की भरी दुपहरी में, बिन तारों के भी,
तारों की महफिल सज जाया करती है
और
मैं कोयल सी कूका करती हूँ।
If you want more poems then you can follow me on my Instagram, Facebook and my Youtube