दिन-रात तेरा सजदा कैसे न करूँ
कभी सोचा है, जब ईश्वर खुद को हमारी आत्मा में समा लेते हैं तो क्या हो सकता है? इस कविता में वही भावनाएँ हैं जो एक भक्त के दिल से निकल कर ईश्वर की ओर जाती हैं।
श्वासें देकर हमें जीवन का उपहार दिया।
प्यारे दिल के साथ प्रेम की अनमोल भेंट दी।
और एक अद्वितीय सोच और अस्तित्व देकर हमें खुद को पहचानने का मौका दिया।
हमारी ज़िंदगी में संघर्ष भी ईश्वर की दया का हिस्सा हैं, जो हमें और बेहतर बनाते हैं। इस असीम आशीर्वाद के लिए मेरी भक्ति और कृतज्ञता सिर्फ शब्दों में नहीं, बल्कि हर पल में समाहित है।
ऐ खुदा, क्या-क्या गिनूँ, जो तूने बख्शा मुझे?
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कविता “दिन-रात तेरा सजदा कैसे न करूँ” में भक्ति और आभार की गहराई को व्यक्त किया गया है। यह कविता ईश्वर के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता की अनूठी अभिव्यक्ति है, जो भक्त के दिल से सीधे ईश्वर तक पहुंचती है।
कविता का सारांश:
कवि के अनुसार, जब ईश्वर अपनी उपस्थिति को हमारी आत्मा में समाहित कर लेते हैं, तो जीवन की सच्चाई और सुंदरता का नया अर्थ खुलता है। कवि इस बात की गहराई से महसूस करता है कि जीवन की प्रत्येक सांस, हर प्रेम की भावना, और आत्मा की पहचान—ये सभी ईश्वर की अनमोल भेंट हैं।
कविता के मुख्य बिंदु:
जीवन का उपहार: श्वासें, जो हमें जीवन प्रदान करती हैं, एक दिव्य उपहार के रूप में देखी जाती हैं।
प्रेम की भेंट: ईश्वर ने हमें न केवल प्रेम दिया बल्कि दिल की गहराइयों से प्रेम की अनमोल भेंट भी दी।
स्वयं की पहचान: एक अद्वितीय सोच और अस्तित्व के साथ, हमें खुद को पहचानने का अवसर मिला है।
कविता में संघर्षों को भी ईश्वर की दया के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो हमें और मजबूत और बेहतर बनाते हैं। यह एहसास कि जीवन में हर अनुभव, चाहे वह कठिन हो या आसान, ईश्वर के आशीर्वाद का हिस्सा है, भक्त के दिल में गहराई से समाया हुआ है।
सारांश:
“दिन-रात तेरा सजदा कैसे न करूँ” कविता भक्ति और आभार के भावों को खूबसूरती से व्यक्त करती है। यह दर्शाती है कि ईश्वर द्वारा दी गई हर चीज़ के लिए कृतज्ञता और श्रद्धा का एक विशेष स्थान है, जो शब्दों में नहीं बल्कि हर पल की गहराई में व्यक्त होती है।